ये ज़िक़्र है उसी का
ये ज़िक़्र ना हुआ तो ज़िन्दगी बन जाएगी एक फिक्र ही सदा। तेरी आहटें तो सदियों से महसूस कर रहे है अब तू भी महसूस हो ये आस है सदा। कुछ तो है भीतर जो बेह नहीं पाता रोक लगी हुई है बेतुके ख़यालो की। कुछ तो है बाहर जो देख के भी महसूस नहीं होता मेज सजी हुई है बहानों की। इबादत ना परे इलाही से इलाही ना परे तुझसे पर तू क्यों है परे खुद से? अब मै भी महसूस हो मुझको ये दुआ है तुझसे।