रुक जा जरा
रुक जा जरा
देख तो ले एक पल!
कैसे खडे है राह मे
एकसाथ होकर भी न मिलकर।
किसी का रंग अलग किसी का रूप अलग
कही कद अलग कही घेर अलग।
किसी की बाँहें आसमान को चूमती
किसी की हवा संग झूलती
मगर जड़ें सबकी जमीन पे ही रेंगती।
जैसे कोई जाल रोकना चाहें किसी धारा को
जो अाज तक किसीके लिए न रुकी।
काट रहे उस तूफान को
जिसने आज तक न जाने काटे है कितनें परवत।
छान रहे उस सूरज को
जिसने जला कर राख कर दिया न जाने कितनों को।
यह हैं जंगल!
सदियों से रहा धीट
प्रतीक अनेकता मे एकता का
भिन्नता मे छुपी सुंदरता का।
कह रहा है तुझसे ऐ इनसान
रुक जा जरा एक पल
देख तो ले!
जिंदगी दौड़ मे नहीं
उस थमें हुए पल मे मिलती है
कलियां तेरे सीने पर लटकी माला मे नहीं
मेरी रगों मे झूलती डाल पे खीलती है
जरा देख तो ले!
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